◼️बीड में मक्का मस्जिद पर बम हमला: हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की साजिश, पुलिस की भूमिका पर सवाल
बीड, 21 जुलाई 2025: बीड जिले के अर्धमसाला गांव में 29 मार्च 2025 को हजरत सय्यद बादशाह के दरगाह के संदल कार्यक्रम में हिंदू-मुस्लिम भाइयों ने एकजुट होकर जुलूस निकाला। लेकिन इस सामाजिक सौहार्द को तोड़ने की कोशिश करते हुए विजय गव्हाणे और श्रीराम सांगळे ने मुस्लिम समुदाय को धमकी दी कि वे गांव में नवनिर्मित मक्का मस्जिद को तोड़ देंगे। आरोपियों ने अश्लील गालियां दीं और भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल किया। गांववालों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन उसी रात 2 से 3 बजे के बीच मक्का मस्जिद में जोरदार बम विस्फोट हुआ। इस हमले में मस्जिद की खिड़कियां, दरवाजे, फर्श और धार्मिक ग्रंथों को भारी नुकसान पहुंचा। कुछ लोगों ने आरोपियों को घटनास्थल से भागते हुए देखा।
फिर्यादी राशिद अली हुसेन सय्यद ने पुलिस में शिकायत दर्ज की कि आरोपियों ने जेलेटिन जैसे विस्फोटकों का उपयोग कर मस्जिद में बम विस्फोट किया, जिसका मकसद हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ना और मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना था। इसके अलावा, विजय गव्हाणे पर इंस्टाग्राम पर जेलेटिन की छड़ें दिखाने वाला वीडियो वायरल करने का भी आरोप है।
पुलिस की संदिग्ध भूमिका पर सवाल
पुलिस ने शुरुआत में इस गंभीर मामले में भारतीय दंड संहिता और विस्फोटक अधिनियम के हल्के धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, लेकिन गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (यूएपीए) की कठोर धाराएं 15, 16 और 18 लागू नहीं कीं। मुस्लिम समुदाय के जानकारों ने इसे पुलिस की पक्षपातपूर्ण और निष्क्रिय रवैया करार देते हुए हिंदू आतंकवादियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया। जनता के गुस्से और अखबारों में छपी खबरों के दबाव के बाद पुलिस को मजबूरन यूएपीए की धाराएं लागू करनी पड़ीं। हालांकि, शुरुआत में हल्की धाराएं लगाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कोई कार्रवाई न होने से पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।
न्यायालय ने ठुकराया जमानत अर्ज
यह मामला वर्तमान में बीड जिले के विशेष न्यायालय में लंबित है। आरोपियों ने जमानत के लिए अर्जी दी थी, लेकिन सरकारी वकील बी.एस. राख और फिर्यादी के वकील सय्यद अजहर अली ने मजबूत दलीलें पेश कीं। मस्जिद पर बम हमले की गंभीरता और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश को देखते हुए न्यायालय ने विजय गव्हाणे और श्रीराम सांगळे के जमानत अर्ज को खारिज कर दिया।
सामाजिक सौहार्द को खतरा
पुलिस पर आरोपियों को बचाने के लिए हल्की धाराएं लगाने का इल्जाम है, जिससे सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचने का खतरा बढ़ गया है। लोगों का कहना है कि पुलिस को निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए थी। इस संदिग्ध रवैये से जनता का पुलिस पर भरोसा डगमगा गया है। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या कानून सबके लिए बराबर है?
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