◼️इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के बीच ऐतिहासिक दृष्टि से पूरे विवाद को जानिए !
Kya hai Israel Palestine Vivaad ?
दशकों से इजरायली-फिलिस्तीनी विवाद जारी है. इस बीच फिलिस्तीन का हमास संगठन इजरायल में बड़े पैमाने पर रॉकेट बैराज और जमीन हवा और समुद्री हमले शुरू किए. जिसके बाद इजरायल को भी तीव्र हवाई हमले के साथ जवाब देने पड़े जिसमें दोनों देशों के सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं।
फ़िलिस्तीनी समूह हमास ने इज़राइल पर रॉकेट हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा कि उसके सदस्यों ने 5,000 से अधिक रॉकेट लॉन्च किए थे. इस बड़े हमले के बाद इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने युद्ध का ऐलान कर दिया है. हालांकि इजरायल और फिलिस्तीन विवाद काफी पुराना है जिसको जानने के लिए आइए इतिहास के पन्नों को पलटते हैं.
क्या है हमास और कैसे शुरू हुआ Israel vs Palestine Conflict?
प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद, ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर नियंत्रण हासिल कर लिया. तब तक इजरायल नाम के कोई देश का अस्तित्व नहीं था. इजरायल के वर्तमान क्षेत्र से लेकर वेस्ट बैंक तक के पूरे इलाके फिलस्तीन के नाम से जाने जाते थे. जहां अरबी मुसलमानों के साथ यहूदी शरणार्थी के तौर पर फिलिस्तीन में रह रहे थे
आगे, यहूदियों ने अपना एक अलग देश बनाने की मुहिम छेड़ दी. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को फ़िलिस्तीन में एक यहूदी मातृभूमि बनाने का काम सौंपा, जिससे दोनों समूहों के बीच तनाव बढ़ गया।
रिपोर्ट्स की मानें तो 1920 और 1940 के दशक में, फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासियों की तादाद में काफी इजाफा हुआ, क्योंकि कई यहूदी यूरोप में उत्पीड़न से भाग गए और जिंदगी गुजर बशर के लिए मातृभूमि की तलाश की. खासकर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में हिटलर के नाजी शासन में यहूदियों का नरसंहार किया गया यहूदियों के काफी उत्पीड़न सहने के बाद अलग देश की मांग तेज होने लगी.
द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिशर्स ने फिलिस्तीन में यूरोपीय यहूदियों के आप्रवासन को सुविधाजनक बनाना शुरू कर दिया था. साल 1922 और 1935 के बीच यहूदी आबादी 9 प्रतिशत से बढ़कर कुल आबादी का लगभग 27 प्रतिशत हो गई थी।
यहूदियों ने अपनी जान बचाने फ़लस्तीन में शरण ली धीरे-धीरे फ़लस्तीन पर अपना कब्जा बनाना शुरू कर दिया जिसके कारण यहूदियों और अरबों के बीच गहमागहमी के साथ ही ब्रिटिश शासन की मुखालिफत तेज हो गई. 1947 में, यूनाइटेड नेशन ने फ़िलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने के लिए मतदान किया, जिसमें यरूशलेम को इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के अधीन रखा गया. यहूदी नेतृत्व ने योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब पक्ष ने अपनी जमीन का विभाजन स्वीकार नहीं किया, जिसकी वजह से इसे कभी लागू नहीं किया गया।
1948 में, संघर्ष को समाप्त करने में असमर्थ, ब्रिटिश अधिकारी पीछे हट गए और यहूदी नेताओं ने इज़राइल की स्थापना की घोषणा की. कई फ़िलिस्तीनियों ने इसका विरोध किया और युद्ध छिड़ गया. पड़ोसी अरब देशों ने सैन्य बल के साथ हस्तक्षेप किया. बावजूद इसके अरब देशों की हार हुई और सैकड़ों-हजारों फिलिस्तीनी भाग गए या उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया, जिसे वे अल नकबा या "द कैटास्ट्रोफ" कहते हैं.
कैसे फिलिस्तीन पर बढ़ता गया इजरायल का कब्ज़ा?
अगर हम मैप पर नजर डालें तो देख सकते हैं कि कैसे साल 1917 से अब तक फिलिस्तीन पर इजरायल का कब्ज़ा बढ़ता चला गया.
1947-50 के बीच यहूदियों सैनिकों द्वारा 7 लाख 50 हजार फिलिस्तीनियों को निष्काषित कर दिया गया. फिर धीरे इजरायल ने फिलस्तीन के अधिकांश हिस्से पर अपना कब्ज़ा कर लिया. 1967 के युद्ध में इजरायली सेना ने पूरे ऐतिहासिक फिलिस्तीन पर अपना नियंत्रण जमा लिया. तक़रीबन 3 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को उनके घरों से निकाल दिया.
Israel vs Palestine: युद्ध और शांति
पिछले कुछ वर्षों में, इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच कई झड़पें हुईं. जिसमें कुछ छिटपुट तो कुछ विनाशकारी रहीं. जिसकी वजह से हजारों लोगों की मौत हुई.
1987 में, हमास, हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया (इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन) का संक्षिप्त रूप, सैन्य क्षमताओं वाला एक राजनीतिक समूह, एक अंतरराष्ट्रीय सुन्नी इस्लामवादी संगठन, मुस्लिम ब्रदरहुड की एक राजनीतिक शाखा के रूप में फिलिस्तीनी मौलवी शेख अहमद यासीन द्वारा लॉन्च किया गया था.
दो फिलिस्तीनी विद्रोहों या 'इंतिफादा' ने इजरायल-फिलिस्तीनी संबंधों पर गहरा असर डाला, खासकर दूसरे विद्रोह ने, जिसने 1990 के दशक की शांति प्रक्रिया को समाप्त कर दिया और संघर्ष के एक नए युग की शुरुआत की. दोनों इंतिफादा में हमास की भागीदारी थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 11 जुलाई 2000 को कैंप डेविड शिखर सम्मेलन बुलाया, जिसमें इजरायली प्रधान मंत्री एहुद बराक और फिलिस्तीनी ऑथोरिटी के चेयरमैन यासर अराफात को गहन अंतिम स्थिति वार्ता के लिए एक साथ लाया गया, लेकिन शिखर सम्मेलन बिना निष्कर्ष के समाप्त हो गया, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए.
इसके बाद हमास ने वेस्ट बैंक और अरब और इस्लामी दुनिया में अपने लड़ाकों से इजरायल के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया है. वहीं पूर्वी येरुशलम, गाजा और वेस्ट बैंक में इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के बीच तनाव लगातार बना हुआ है.
बता दें कि हमास को हथियार प्राप्त करने से रोकने के प्रयास में इज़राइल और मिस्र ने गाजा की सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा है. इससे गाजा में मानवीय संकट पैदा हो गया. कई लोग भोजन और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
Jionism का नारा था - Land without People and People without land.
यानी यहूदी वे लोग हैं जिनके पास ज़मीन नहीं और फलस्तीन वह जगह है जहाँ लोग नहीं रहते।
यानी वे फ़लस्तीन की हरी-भरी ज़मीन पर सैकड़ों वर्षों से रह रहे फ़लस्तीनी ईसाई और मुसलमान लोगों के अस्तित्व को ही नहीं माँगे थे। गोल्डा मायरा ने कहा था- There is no Palestine.
और इसे सच करने के लिये पिछली सदी की शुरुआत से अब तक लगातार फ़लस्तीनी लोगों की ज़मीनें छीनी गईं, घर उजाड़े गये, गाँव और शहर बर्बाद कर दिये गये। इन सब जगहों पर बाहर से आये यहूदी बसा दिये गये।
UN का कोई चार्टर, कोई समझौता नहीं माना इज़राइल ने, बच्चे औरतें बूढ़े लगातार मारे जाते रहे सुर दुनिया आँख मूँदे देखती रही।
यासर अराफ़ात के साथ ओस्लो समझौते के बाद लगा था हालात सुधरेंगे लेकिन इज़रायली दक्षिणपंथ ने ऐसा होने नहीं दिया और हमास तथा हिज़बुल्ला जैसे संगठनों का ज़ोर बढ़ता गया।
जब फ़लस्तीनी किसी तरह का विरोध करते हैं तो इसे आतंकवाद कहा जाता है, जब इज़रायल खुले तौर पर नरसंहार करता है तो सब ख़ामोश रहते हैं।
गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों का दावा है कि वे इजरायलियों के कारण पीड़ित हैं, जैसे कि गाजा की नाकाबंदी, वेस्ट बैंक बाधा का निर्माण और फिलिस्तीनी घरों का विनाश. वहीं इज़राइल का तर्क है कि वह केवल फिलिस्तीनी हिंसा से खुद को बचाने के लिए काम कर रहा है. अब एक बार फिर विवाद ज्यादा बढ़ गया है.
फिलिस्तीन के बंटवारे और भारत के बंटवारे में भी समानता
फिलिस्तीन के बंटवारे के इतिहास को अगर आप देखें तो 1948 में फिलिस्तीन के दो टुकड़े हुए और एक नया देश इजरायल बना था. उससे एक साल पहले 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था और पाकिस्तान बना था. दोनों ही जगह पर ये अंग्रेजों का किया धरा है. अंग्रेज जहां भी गए, उस देश को आजाद करने के बाद लड़ाई का एक बीज बो दिया. इजरायल और फिलिस्तीन बनाने का फैसला लंदन में हुआ. इंडिया-पाकिस्तान भी लंदन की ही देन हैं. बंटवारे के बाद ही दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया.
दरअसल 1948 में फिलिस्तीन का बंटवारा बेलफोर घोषणापत्र के तहत किया गया. ये कॉन्सेप्ट अंग्रेज ही लेकर आए थे. आर्थर बेलफोर ब्रिटेन के विदेश सचिव थे, जिन्होंने फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक अलग देश बनाने की जरूरत बताई थी. बंटवारे के समय फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा इजरायल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया. वहीं यरुशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO का हिस्सा बना दिया गया. UNO के पास जो हिस्सा था, उस पर न तो इजरायल अपना हक दिखा सकता था और न ही फिलिस्तीन. अरब देश इससे नाराज हो गए. इजराइल बना ही था कि जंग शुरू हो गई ठीक उसी तरह जैसे पाकिस्तान बनने के बाद कश्मीर मुद्दे पर दोनों देशों के विवाद शुरू हो गए थे और आज भी सिलसिला जारी है.
भारत कब किसके साथ फलस्तीन या इजरायल
जब भी फलस्तीन और इजराइल युद्ध हुआ भारत ने हमेशा फलस्तीन का साथ दिया था।कियूंकि भारत -पाकिस्तान युद्ध मे अरबों ने हमेशा भारत का ही साथ दिया था। महात्मा गांधी,नेहरू जी,इंदिरा गांधी जी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भजपा की सरकार हो भारत हमेशा फ़लस्तीन के साथ खड़ा रहा। परंतु अभी नफ़रत और धर्मिक वोटों की राजनीति कर रही मौजूदा सरकार में दोहरी भूमिका देखने को मिल रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इजराइल के साथ होने की बात कहते हैं वंही विदेश मंत्रालय द्वारा कहा जाता है भारत फलस्तीन की आज़ादी की लड़ाई में उनके साथ है।
भारत में कुछ नफरती लोगों ने इजराइल के सपोर्ट में भारत के अपने ही अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरती बयान बाजी करने में लगे हैं।जिनको इतिहास से कोई सरोकार नहीं उनको सिर्फ नफरत फैलाना है और मोदी सरकार इन जैसे लोगों पर अंकुश लगाने के बजाय इनको बढ़ावा देती नज़र आती है।
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